सारे घर में खुशियों का माहौल छाया था,
छः वर्षीय गुडिया की शादी का दिवस आया था,
सात वर्षीय दूल्हा जी घोड़ी पर चढ़कर आये,
पीछे-पीछे बारातियों का कारवां भी लाये,
पंच-पटेल और सरपंच जी भी आये,
साथ में सफेदपोश विधायक जी को भी लाये,
खबर पाकर बाल-विवाह की थानेदारजी भी आये,
साथ में जीप में चार सिपाही भी लाये,
थानेदार जी आते ही रौब जमाने लगे,
सर सुनकर गाड़ी से विधायक जी भी आने लगे,
देखके थानेदार को विधायक जी ताव में आये,
बोले रंग में भंग डालने तुम यहाँ क्यों आये,
उतनी सुनकर नेताजी की थानेदार जी सटक गए,
जाते-जाते एक-एक गिलास लस्सी भी गटक गए,
शासन और प्रशासन वतन की जान है,
आजकल ऐसे ही फ़र्ज़ निभाना इनकी शान है,
जब मंडप पर पंडित जी संकल्प दिलाने लगे,
बाल वर-वधु को नीद के झोंके आने लगे,
गोद में लेकर परिजन उनके फेरे लगवा रहे थे,
विवाह-संस्कार को पूरा जो करवा रहे थे,
दुल्हे की माताजी फूली ना समाई थी,
उसके आंगने में दुल्हन जो आई थी,
धीरे-धीरे वर पर कुसंगति का ज्वर चंड गया,
इक्कीश की उम्र तक वह गुंडा जो बन गया,
गुडिया थी वो अब अध्यापिका जो बन गई,
धीरे-धीरे वर के कर्मो की कलई भी खुल गई.
इस दंपत्ति का जीवन ऐसा उलझा था,
विवाद `तलाक़` पर जाकर सुलझा था,
बाल विवाह पर रोक लगानी होगी,
समाज में यहाँ जागरूकता फैलानी होगी,
इन कुरीतियों को समाज से समूल मिटाने को,
“”SOM”” बदलनी होगी सोच नया सवेरा लाने को